सन 1998 के हरिद्वार महाकुम्भ में श्री नीलकंठ महादेव स्थित सिद्ध बाबा के मन्दिर में स्वामी श्री प्रीतम गिरी जी महाराज व समस्तीपुर के स्वामी श्री कैलाश गिरी जी महाराज की परम अनुकम्पा से श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के परम तपस्वी निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री विश्वदेवानंद जी महाराज श्री से विधिवत सन्यास दीक्षा ग्रहण कर नर से नारायण के रूप में होकर पूर्ण रूप से सन्यास में दीक्षित होकर परमहंस परिव्राजकाचार्य १००८ राम गिरी नाम प्राप्त किया था, किन्तु मेरे मूल लक्ष्य के रूप में मुझे श्रीविद्या एवं ब्रह्मविद्या की मूल जननी गुप्तगायत्री की दीक्षा देने वाले स्वामी श्री कैवल्यानन्द गिरी जी महाराज “कौलिक” जी द्वारा प्रदत्त नाम परमहंस परिव्राजकाचार्य १००८ श्री नीलकण्ठ गिरी नाम ही प्रारम्भ से अब तक प्रचलित है, और इसी कारण से मुझे “श्री नीलकण्ठ गिरी व राम गिरी” इन दो नामों से जाना जाता है |
सन्यास ग्रहण के उपरान्त मैंने श्री नीलकंठ महादेव स्थित सिद्ध बाबा के मन्दिर, लक्ष्मणझूला से डेढ़ किमी ऊपर जंगल में स्थित गणेश गुफा व मणिकूट पर्वत के शिखर पर स्थित सिद्धों के कोट में साधनात्मक समय व्यतीत किया | तदुपरान्त 2001 में प्रयाग महाकुम्भ में सम्मिलित होने के उपरान्त अखाड़े की जमात में रहने की अनिवार्यता व साथ ही अखाड़े में साधनानुकूल एकान्त परिवेश नहीं होने के कारण मेरे सम्मुख साधनाओं को निरंतर रखने की विडंबना उत्पन्न होने पर मैंने अपनी दुर्गानाथी मढ़ी के कोठारी जी श्री दिगम्बर गजानन गिरी जी महाराज से अनुमति लेकर एक माह के अन्तराल में ही अखाड़े की मर्यादाओं को भी त्याग दिया था, ओर मणिकूट पर्वत के शिखर पर जंगल में स्थित सिद्धों के कोट में अपने जीवन को पूर्ववत् स्वछंद, साधनाओं व एकांतवास में पुनः स्थित किया था !
इसके बाद से मैंने अपने अखाड़े एवं मढ़ी में भी कभी आवागमन नहीं किया, क्योंकि फिर कभी वहां जाने की इच्छा ही उत्पन्न नहीं हो सकी ! जिस कारण से अब मुझे यह ज्ञात नहीं है कि मेरे द्वारा अखाड़े में आवागमन नहीं करने के परिणाम स्वरूप मेरी गणना श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी अखाड़े के सन्यासी के रूप में रखी जा रही होगी अथवा नहीं ! मैं अपने अखाड़े एवं मढ़ी में कभी आवागमन भले ही नहीं करता हूं, किन्तु श्री गुरु कपिल मुनि जी महाराज, श्री महन्त श्री १००८ श्री माया गिरी जी महाराज सहित अखाड़े व मढ़ी के सभी सिद्धों संतों को मेरा प्रातः सांय प्रणाम होता है !