सम्पदा किसे कहते हैं ?

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन को अनन्त खुशियों से परिपूर्ण करें ।

सम्पदा :- यह तत्व की वह सर्वश्रेष्ठ अवस्था होती है जो कि किसी भी जीव की व्यक्तिगत ही होती है, इसमें कोई भी द्वितीय पक्ष हस्तक्षेप नहीं कर सकता है । तथा यह सदैव व्यक्तिगत, सर्वत्र प्रयोज्य, प्रभावयुक्त, चैतन्य व नित्य वृद्धि को प्राप्त करने वाली होती है । तथा इसका कभी भी अन्त नहीं होता है, यह उपयोग व प्रयोगों में निरन्तर रहने के कारण नित्य वृद्धि को प्राप्त करने वाली होती है ।

आपके अपने जीवन में घटित हुई घटनाओं, प्रयोगों व अनुभवों से जो सीख आपने अपने व्यवहार में सम्मिलित की होगी, ऐसी दुर्लभ सम्पदा का सबसे बड़ा उदाहरण आपके पास वही है, ओर यही “बहूमूल्य सम्पदा” आप अपनी संतति को निश्चित ही अग्रसारित करना चाहेंगे ।

जय त्रिपुरेश्वरी मम आनन्दचक्र संचारिणी ।

द्वारा :- श्री नीलकण्ठ गिरी महाराज
(प्रकृति व देह तन्त्र रहस्य, 118/2 प्रज्ञाचक्र रहस्य, 04/09/2007)