एक क्षण से लेकर दिवस, पक्ष, माह, वर्ष, युग, कल्प, मनवन्तर आदि समय की माप मात्र हैं ओर इनके नाम केवल समय की माप के नाम मात्र हैं, जो महाविलय (प्रलय काल) तक निरन्तर पुनरावृत्ति करते रहते हैं ।
जिनकी गति, प्रकृति, अवस्था व प्रवृत्ति किसी भी देव, दानव, मानव या अन्य किसी भी प्राणी आदि द्वारा अवरूद्ध अथवा विश्रंखलाबद्ध कदापि नहीं की जा सकती है ।
“हमारा उपरोक्त कथन उपरोक्त तथ्य से अनभिज्ञ आम जनमानस को “सतयुग का आह्वान करने एवं सतयुग” के शीघ्र आने का झांसा देकर “सतयुग” के शीघ्र आने जैसे अभियान चलाकर अपने किन्हीं भी उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रगतिशील किसी भी व्यक्ति/संस्थान व उसके अनुयायियों के मन्तव्य के लिए “अमावस्या की अगली रात्रि को पूर्णिमा” को लाने जैसा चुनौतीपूर्ण हो सकता है ।”
क्योंकि वर्तमान में तो वैवस्वत् मन्वन्तर के श्वेतवाराह कल्प के अट्ठाईसवें कलियुग का प्रथम चरण ही प्रगतिशील है, तो कलियुग के शेष तीन चरण व्यतीत किये बिना ही “सतयुग” कैसे ले आओगे ???