साधक को अपने गुरु से अनुमति व सहमति लेकर व पूजन के मध्य के गोपनीय तथ्यों को भलीभांति जान लेने पर ही यह श्री राजराजेश्वरी उपासना सम्पन्न करनी चाहिए !
प्राणायाम आचमन आदि कर आसन पूजन करें :- ॐ अस्य श्री आसन पूजन महामन्त्रस्य कूर्मो देवता मेरूपृष्ठ ऋषि पृथ्वी सुतलं छंद: आसन पूजने विनियोग: ।
विनियोग हेतु जल भूमि पर गिरा दें ।
पृथ्वी पर रोली से त्रिकोण का निर्माण कर इस मन्त्र से पंचोपचार पूजन करें –
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुनां धृता त्वां च धारय मां देवी पवित्रां कुरू च आसनं ।ॐ आधारशक्तये नम: । ॐ कूर्मासनायै नम: । ॐ पद्मासनायै नम: । ॐ सिद्धासनाय नम: । ॐ साध्य सिद्धसिद्धासनाय नम: ।
तदुपरांत गुरू गणपति गौरी कुलपित्र, कुलगुरु, कुलदेवता, कुलदेवी व स्थान देवता आदि का स्मरण व पंचोपचार पूजन सम्पन्न करें ।
विनियोग करें :-
ॐ अस्य श्री सर्वमंगला राजराजेश्वरी महामंत्रस्य, श्री आनन्द भैरव ऋषि, अनुष्टुप् छंदः, श्री सर्वमंगला राजराजेश्वरी देवता, मम अभिलसित अर्थ काम पुरुषार्थ फल सिद्ध्यर्थे श्री श्रीचक्र पुर वासिनी श्री महामाया राजराजेश्वरी महामन्त्र जपे विनियोगः !
विनियोग हेतु थोड़ा जल भूमि पर गिरा दें ।
निम्न मन्त्रों से करन्यास करें :-
1 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) अंगुष्ठाभ्याम नमः ।
2 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
3 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) मध्यमाभ्यां वष्ट ।
4 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) अनामिकाभ्यां हुम् ।
5 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) कनिष्ठिकाभ्यां वौषट ।
6 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) करतल करपृष्ठाभ्यां फट् ।
निम्न मन्त्रों से षड़ांग न्यास करें :-
1 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) हृदयाय नमः ।
2 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) शिरसे स्वाहा ।
3 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) शिखायै वष्ट ।
4 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) कवचायै हुम् ।
5 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) नेत्रत्रयाय वौषट ।
6 ॐ (प्राप्त मन्त्र का मानसिक उच्चारण कर) अस्त्राय फट् ।
निम्न मन्त्रों से गुरू पूजन करें :-
1 ॐ श्री गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
2 ॐ श्री परम गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
3 ॐ श्री परात्पर गुरू पादुकां पूजयामि नमः ।
अपनी आराध्या भगवती श्री महामाया राजराजेश्वरी का श्रीचक्र के बिन्दु पर यथौपचार पूजन सम्पन्न करें !
अपनी आराध्या भगवती शिवा का ध्यान करें :-
ॐ बालार्क मण्डलाभासां चतुर्बाहां त्रिलोचनां। पाशांकुश शरांश्चापं धारयन्तीं शिवां भजे ।।
अरुणां करुणा तरंगिताक्षीं धृतपाशांकुश पुष्पबाणचापाम् । अणिमादिभि रावृतां मयूखैः अहमित्येव विभावये भवानीम् ॥
ध्यायेत् पद्मासनस्थां विकसितवदनां पद्म पत्रायताक्षीं हेमाभां पीतवस्त्रां करकलित लसमद्धेमपद्मां वरांगीम् ।
सर्वालंकारयुक्तां सकलमभयदां भक्तनम्रां भवानीं श्री विद्यां शांतमूर्तिं सकल सुरसुतां सर्वसंपत्-प्रदात्रीम् ॥
तदुपरान्त दीक्षा में प्राप्त हुए मूल मन्त्र अथवा विद्वान द्वारा विधिवत् अनुष्ठान करने के अधिकार सहित प्राप्त मन्त्र का गुरु अथवा विद्वान द्वारा बताई गई विधि द्वारा निर्धारित संख्या में कमलगट्टे की माला द्वारा केवल मानसिक जप, यज्ञ आदि कर्म सम्पन्न कर हाथ में जल लेकर भगवती पराम्बा अथवा दीक्षा देने वाले गुरु को अपना मन्त्र जप कर्म समर्पित कर आसन त्यागें ।