एक सन्यासी होने के नाते प्रकृति के नियमों के विरूद्ध मैं किसी व्यक्ति या परिवार के पक्ष में कदापि नहीं हुं ओर न ही मैं धर्म, नीति, सिद्धान्त व मानवता के विपरीत स्वार्थियों के हित का कारण हुं ।
केवल धर्म, संस्कृति, मानवता के अनुकूल रहना व धर्म, संस्कृति व प्राणियों की रक्षा के निमित्त परमार्थयुक्त निष्काम कर्म करते हुए आध्यात्म मार्ग पर चलते रहना ही मेरा धर्म, अधिकार व कर्तव्य हैं ।
अतः मुझसे सम्बन्ध रखने वाले मेरे किसी भी शिष्य या सज्जन को यदि यह भ्रम हो, कि मैं प्रकृति के नियमों के विरूद्ध किसी व्यक्ति या परिवार के पक्ष में रह सकता हुं, या मैं धर्म, नीति, सिद्धान्त व मानवता के विपरीत कर्म द्वारा किसी के हित का कारण बन सकता हुं ! तो कृपया वह अपना यह भ्रम स्वयं ही तोड़कर रखें ।
क्योंकि प्रकृति के नियमों, धर्म, नीति, सिद्धान्त व मानवता के विपरीत केवल स्वार्थपरक कर्म द्वारा लाभ लेने की इच्छा रखने वाले प्राणियों का मैं सदैव ही “पराया” हुं ।
जब मेरा कोई शिष्य या निकटतस्थ सज्जन प्रकृति के नियमों, धर्म, नीति, सिद्धान्त व मानवता के विपरीत कर्म द्वारा मेरी शिक्षा के विरूद्ध आचरण करेगा, तब उसे ससम्मान स्वयं ही सदैव के लिए मुझसे दूर हो जाना चाहिए, चाहे वो प्राणी मेरे कितना भी निकटस्थ क्यों न हो ।
मैं तो केवल धर्म, संस्कृति, मानवता व प्राणियों की रक्षा के निमित्त परमार्थ, यज्ञ, तप व साधनायुक्त निष्काम कर्म करते हुए आध्यात्म मार्ग पर उड़ने वाला स्वतन्त्र “पक्षी” हुं ।