आम जनमानस के लिए मेरा सन्देश !

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन को अनन्त खुशियों से परिपूर्ण करें ।

एक सन्यासी होने के नाते प्रकृति के नियमों के विरूद्ध मैं किसी व्यक्ति या परिवार के पक्ष में कदापि नहीं हुं ओर न ही मैं धर्म, नीति, न्याय, सिद्धान्त व मानवता के विपरीत स्वार्थियों के हित का कारण हुं ।

केवल न्याय, धर्म, संस्कृति, मानवता के अनुकूल रहना व धर्म, संस्कृति व प्राणियों की रक्षा के निमित्त परमार्थयुक्त निष्काम कर्म करते हुए आध्यात्म मार्ग पर चलते रहना ही मेरा धर्म, अधिकार व कर्तव्य हैं । क्योंकि मेरे लिए किसी भी व्यक्ति विशेष की अपेक्षा समाज व प्रकृति सर्वोपरी है ।

मुझसे सम्बन्ध रखने वाले मेरे सभी शिष्यों, अनुयायियों, परिचितों एवं आगन्तुक अतिथियों को यही सन्देश देना चाहता हूं, कि सबसे पहले आप मानवीय, सैद्धान्तिक, न्यायिक, नैतिक, प्राकृतिक, आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक नियमों को समझना व अपने चरित्र व्यवहार में उनको सम्मिलित करें । किन्तु किसी भी क्षेत्र/विषय के नियम व सिद्धान्त के विरुद्ध अपने उत्थान व लाभ की अपेक्षा कदापि न करें, ऐसा करने से आपका मानसिक, आध्यात्मिक, आर्थिक व भौतिक पतन सुनिश्चित हो जाता है ।

अतः मुझसे सम्बन्ध रखने वाले मेरे किसी भी शिष्य, अनुयायी, परिचित एवं आगन्तुक अतिथी सज्जन को यदि यह भ्रम हो, कि मैं प्रकृति के नियमों के विरूद्ध किसी व्यक्ति या परिवार के पक्ष में रह सकता हुं, या मैं धर्म, नीति, न्याय, सिद्धान्त व मानवता के विपरीत कर्म द्वारा किसी के हित का कारण बन सकता हुं ! तो कृपया वह अपना यह भ्रम स्वयं ही तोड़कर रखें ।

क्योंकि प्रकृति के नियमों, धर्म, नीति, न्याय, सिद्धान्त व मानवता के विपरीत केवल स्वार्थपरक कर्म द्वारा लाभ लेने की इच्छा रखने वाले प्राणियों का मैं सदैव ही “पराया” हुं ।

जब मेरा कोई शिष्य या निकटतस्थ सज्जन प्रकृति के नियमों, धर्म, नीति, न्याय, सिद्धान्त व मानवता के विपरीत कर्म द्वारा मेरी शिक्षा के विरूद्ध आचरण करेगा, तब उसे ससम्मान स्वयं ही सदैव के लिए मुझसे दूर हो जाना चाहिए, चाहे वो प्राणी मेरे कितना भी निकटस्थ क्यों न हो ।

मैं तो केवल धर्म, न्याय, संस्कृति, मानवता व प्राणियों की रक्षा के निमित्त परमार्थ, यज्ञ, तप व साधनायुक्त निष्काम कर्म करते हुए आध्यात्म मार्ग पर उड़ने वाला स्वतन्त्र “पक्षी” हुं, यदि आप भी प्रकृति के नियम व सिद्धान्तों के अधीन रहकर आत्मिक व आध्यात्मिक सम्पन्नता से परिपूर्णता प्राप्ति हेतु मेरे साथ सर्वानन्द से परिपूर्ण आध्यात्मिक यात्रा करना चाहते हैं तो आपका स्वागत है । किन्तु यदि आप किसी भी प्रकार से मेरी आध्यात्मिक क्षमताओं को अपने स्वार्थवश असैद्धान्तिक व नीतिविरुद्ध अपने पतन हेतु उपयोग करना चाहेंगे तो निश्चित ही आप अपने इस उद्देश्य में असफल रह जाएंगे ।

मैं अपने शिष्यों, अनुयायियों, परिचितों एवं आगन्तुक अतिथियों से यही अपेक्षा करता हूं, कि