सिद्धपीठ कालीमठ में अत्यन्त दुर्लभ व पवित्र दिव्य “कल्पवृक्ष” एवं “पारिजात” वृक्ष की स्थापना !

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन को अनन्त खुशियों से परिपूर्ण करें ।

भाद्रपद कृष्ण दशमी विक्रमी संवत 2080 को जिस समय हम इस अत्यन्त दुर्लभ व पवित्र दिव्य “कल्पवृक्ष” को कालीमठ में भगवती श्री महाकाली जी के सानिध्य में रौपित करने वाले थे, तो संयोगवश उसके कुछ समय पूर्व ही विश्वप्रसिद्ध एवरेस्ट पर्वत विजेता पद्मश्री संतोष यादव सपरिवार श्री केदारनाथ जी के दर्शन कर अकस्मात् ही वहां आ पहुंचीं ।

बिना किसी पूर्व सूचना के उनके अकस्मात् ही वहां पहुंचने से हम भी आश्चर्यचकित रह गए थे । वह पूर्ववत् सौम्यतापूर्ण प्रणाम करने के उपरान्त किसी छोटी बालिका की भांति निश्छल भाव से जोर से हंसते हुए हमसे बोलीं कि गुरूजी पाण्डव तो भगवान शिव को खोजते हुए केदारनाथ पहुंच गए थे, वैसे ही आप भी कहीं भी छुप जाओ हम आपको वहीं खोज लेंगे ।

कुछ समय उन सब के साथ वार्ता करने के उपरान्त हमने उनसे सहजतापूर्वक कहा कि हे सन्तोषी माता ! यहां पर एक “कल्पवृक्ष” का पौधा सम्भवतः आपके आने की ही प्रतीक्षा कर रहा है । अतः आप अपने हाथों से उसको यहां की भूमि में रौपित कर एक नए इतिहास की नींव रख दीजिए ।

तब हमारे कहने पर पद्मश्री संतोष यादव जी ने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक इस दिव्य “कल्पवृक्ष” तथा एक “पारिजात” वृक्ष को कालीमठ में भगवती श्री महाकाली जी के सानिध्य में रौपित किया ।

इस वृक्ष का वैज्ञानिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है । इसका वानस्पतिक नाम बंबोकेसी है । इस वृक्ष को कल्पवृक्ष, अडनसोनिया टेटा तथा बाओबाब भी कहते हैं ।

वैश्विक स्तर के अनेक वैज्ञानिकों के शोध एवं मतानुसार ओलिएसी कुल का यह वृक्ष ही “कल्पवृक्ष” है ।

वहीं कुछ अवैज्ञानिक मतावलम्बि विद्वानों के मतानुसार “पारिजात” का वृक्ष ही “कल्पवृक्ष” है । किन्तु “पारिजात” व “कल्पवृक्ष” के औषधीय, रासायनिक व प्राकृतिक गुण “पारिजात” वृक्ष ओर “कल्पवृक्ष” को निर्विवाद रूप से पृथक – पृथक कुल व प्रजाती के वृक्ष होना ही प्रमाणित करते हैं ।

पौराणिक सनातन ग्रन्थों के अनुसार समुद्र मंथन के 14 रत्नों में से एक “कल्पवृ‍क्ष” की भी उत्पत्ति हुई थी । समुद्र मंथन से प्राप्त उस वृक्ष को देवराज इन्द्र ने हिमालय के ‘सुर कानन वन’ में किसी अज्ञात स्थान पर स्थापित किया था ।

धार्मिक, सनातन एवं वैज्ञानिक मान्यताओं व प्रमाणों के अनुसार इस वृक्ष में असीमित सकारात्मक ऊर्जा होती है ।

यह वृक्ष दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है ।

हमारे द्वारा रौपित कराए गए इस दुर्लभ व दिव्य “कल्प वृक्ष” के बीज को दक्षिण अफ्रीका से लाकर देहरादून में उसकी पौध तैयार की गई है ।