एक दिन हमें एक मन्दिर में देव प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में सम्मिलित होने हेतु निमन्त्रण प्राप्त हुआ था । उस निमन्त्रण पत्र को देखकर हम संशय में पड़ गए थे कि यह वास्तव में कोई देव मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा का ही धार्मिक कार्यक्रम है या कोई राजनैतिक जनसभा है अथवा किसी क्रिकेट आदि के खेल का उद्घाटन होने वाला है !
क्योंकि उस निमन्त्रण पत्र पर उस धार्मिक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में एक राजनैतिक व्यक्ति का उसके राजनैतिक पदनाम सहित नाम लिखा हुआ है । जिससे यह स्पष्ट भासित है कि वह कार्यक्रम धार्मिक या किसी देव-देवी के प्रति आस्था को समर्पित तो नहीं है, क्योंकि उस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि कोई देव-देवी न होकर कोई राजनैतिक नाम, पद व प्रभाव है ।
देव प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठा जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में भी देवों के अतिरिक्त किसी अन्य के मुख्य/विशिष्ट अतिथि जैसा पद होने जैसी विशिष्टता की आवश्यकता होती है क्या ?
कम से कम ईश्वरीय सत्ता से सम्बन्धित धार्मिक कृत्यों को तो राजनैतिक पदों व प्रभावों से अछूते रख लेना चाहिए !
मानव को कहीं पर तो ईश्वरीय सत्ता को ही सर्वोच्च मानकर अपनी मर्यादा में रहकर अपने संरक्षण के प्रति चैतन्य रह लेना चाहिए !
।। राजनीति में धर्म मिश्रित हो तो कल्याणकारी है, किन्तु धर्म में राजनीति मिश्रित हो जाए तो विनाशकारी ही है ।।
(इस लेख में हमने किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत केन्द्रित न करके निमन्त्रण को केवल “कारणमात्र” मानकर विकृत होती हुई हमारी धार्मिक व सांस्कृतिक व्यवस्थाओं को ही केन्द्रित किया है । किन्तु फिर भी यदि इससे किसी को आघात पहुंच रहा हो तो वह दो-चार बार पुनः इसका अवलोकन करके सन्तुष्ट हो ले ।)
।। श्री अहंकाराकर्षिणी सम्प्रदाय योगिनी कृपा करें ।।