श्री विद्या के विषय में !

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन को अनन्त खुशियों से परिपूर्ण करें ।

श्री विद्या आत्म साधना है. अपनी आत्मा को जानना और अपनी क्षमताओं का विकास करना ही इस विद्या की साधना का मूल है . इस विद्या से हमें जो ज्ञान प्राप्त होता है उसके द्वारा हम अपने जीवन का उच्च स्तरीय विकास कर सुख दुःख से परे होकर सही मायनो में जीवन का आनंद प्राप्त कर सकते है यह बहुत ही प्राचीन वैदिक विद्या है जिसके विषय में विभिन्न ग्रंथों से हमें अलग अलग माध्यमों से जानकारी प्राप्त होती है. श्री विद्या की उपास्य शक्तियों को ललिता, राजराजेश्वरी, महात्रिपुरसुन्दरी, बाला, त्रिपुरा, षोडशी आदि नामों से जाना जाता है मूल तत्व में यह एक ही है मगर भाव और अवस्था के अनुसार इसमें भेद दिखाई देता है .

श्रीविद्या के चार कुल – श्रीकुल, कालीकुल, ताराकुल व एक गुप्त कुल, तथा मात्र चार संप्रदाय – हयग्रीव, नन्दिकेश्वर, लोपामुद्रा व एक गुप्त सम्प्रदाय, चार चरण या पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष, व चार पीठ – कामरूप पीठ, उड्डीयान पीठ, जालंधर पीठ व एक अन्य गुप्त पीठ हैं ! इनको चार ही पद्धतियों – हादी, कादी, कहादी (वादी) व एक अन्य गुप्त (जिसे यहाँ सार्वजनिक करना उचित नहीं) ! व चार आम्नाय होते हैं तथा प्रत्येक आम्नाय का एक कुल, एक पीठ, एक सम्प्रदाय, सोलह पद्धति व क्रमशः चार उपास्य शक्तियां होती हैं ! इनमें से किसी एक पद्धति में विधिवत दीक्षित होकर अपने आम्नाय के अनुसार श्रीविद्या की साधना की जाती है !

आम्नाय के सिद्धांतों के विपरीत कुल, पद्धति, सम्प्रदाय, पीठ व शक्तियों की मूल अवस्थितियों की अवहेलना या अतिक्रमण करते हुए श्रीविद्या साधना करना या कराना यह दोनों ही पतन का कारण व निम्नता का प्रमाणपत्र हैं, और शिष्य को अपने गुरु से दीक्षा लेने के समय आम्नाय के सिद्धांत का यह पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद ही श्रीविद्या साधना करनी चाहिए अन्यथा नहीं ! क्योंकि श्रीविद्या साधना मानव जनित विद्या नहीं है ओर न ही कोई मानव इसके विधान में अतिक्रमण या संशोधन कर सकता है !

श्रीविद्या के चारों सम्प्रदाय व पद्धति में कुल सोलह उपास्य शक्तियां होती हैं जैसे – ललिता, तारा, राजराजेश्वरी, कामाक्षी, महात्रिपुरसुन्दरी, बाला, षोडशी, आदि ! प्रत्येक सम्प्रदाय व पद्धति में उन सोलह उपास्य शक्तियों में से ही कुल व पद्धति के अनुसार चार उपास्य शक्तियां होती हैं ! जिनमें से प्रथम शक्ति साधक के लिए धर्म का, दूसरी शक्ति अर्थ का, तृतीय शक्ति काम का व चतुर्थ शक्ति मोक्ष का निर्धारण कर प्रदान करती हैं ! यह एकमात्र ऐसी परम रहस्यमयी सर्वोच्च विद्या है जो भोग और मोक्ष दोनों एक साथ प्रदान करती है !