श्री ज्योतिर्मणि महायोगमुद्रा पीठ की स्थापना :- भाद्रपद सन 1999 में मणिकूट पर्वत के शिखर पर जंगल में स्थित चौरासी सिद्धों, सप्तऋषियों व माता सती अनुसूया के तपस्थल जिसे पुराणों में सिद्ध कोट, सिद्धों का कोट व सिद्धकूट तथा स्थानीय भाषा में “मणिकूट कोठामा” के नाम से भी जाना गया है, वहां पर पर्णकुटी बनाकर साधना करने लगे, तदन्तर अनेक शूक्ष्म अनुभूतियों के बाद सन 2001 में निकटवर्ती ग्राम भादसी के समस्त निवासियों व श्री जगत सिंह राणा जी के विशेष सहयोग से अमृतोदक कुंड के उत्तर दिशा में मन्दिर निर्मित कर वहां भूमि में स्थित अनादिकल्पेश्वर श्री नीलकंठ भगवान के राजराजेश्वरी मुद्राओं से युक्त स्वयंभूः शिवलिंग को पुनर्स्थापित कर श्री ज्योतिर्मणि महायोगमुद्रा पीठ की पुनर्स्थापना की व सन 2007 तक वहां पर एकांत साधनारत रहे !
श्री ज्योतिर्मणि महायोगमुद्रा सेवा समिति की स्थापना :- आश्विन सन 2007 में साधनहीन व कमजोर वर्ग की सहायता के उद्देश्य से “श्री ज्योतिर्मणि महायोगमुद्रा सेवा समिति” नामक संस्था की स्थापना की, यह संस्था क्षेत्र के अनेक असहाय व गंभीर रोगग्रस्त लोगों के रोग का सक्षम चिकित्सालय में निदान कराने के साथ ही बाढ़ व आपदा ग्रस्त क्षेत्रों के पीड़ितों को संस्था सदस्यों द्वारा संग्रह की गई राहत सामग्री से भोजन, औषधि व अन्य हरसम्भव आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराकर उनका सहयोग करती है, तथा अनेक आर्थिक रूप से कमजोर व अनाथ विद्यार्थियों का सम्पूर्ण शैक्षिक भार वहन करती आ रही है !
श्री ज्योतिर्मणि पीठ की स्थापना :- कार्तिक सन 2007 में मणिकूट पर्वत क्षेत्र में पौराणिक सिद्धपीठ श्री नीलकंठ महादेव जी के मन्दिर के समीप ग्राम तोली नीलकंठ निवासी श्री राजेन्द्र सिंह चौहान जी व उनके पिताजी श्री बलबीर सिंह चौहान जी के द्वारा मुझे निवास हेतु भूमि दान की गई थी !
उस भूमि पर सन 2009 में मेरे परमशिष्य सुरेश कुमार व सन्दीप सिंह के सहयोग से बसन्त पंचमी के स्वयंसिद्ध योग में “महाभद्र नवमणि ब्रह्मपंचक पीठिका” पर 15X15X6.5 इंच प्रमाण में 36.9 किलोग्राम भार वाले ठोस अष्टधातु से निर्मित श्रीविद्या की अधिष्ठात्री भगवती महात्रिपुरसुन्दरी श्री ललिता राजराजेश्वरी के निवास रूपी उर्ध्वपृष्ठीय हादी व कादी विद्यौन्मुखी “श्रीयन्त्र” को प्रतिष्ठित कर “श्री ज्योतिर्मणि पीठ” की स्थापना की गयी थी !
वर्तमान में मैं भगवती मूलसृष्टयाधिष्ठात्री त्रिपुरेश्वरी के श्री चरणों में एकान्त साधना करते हुए श्री ज्योतिर्मणि पीठ पर ही निवासरत हूं !