चेहरों की किताब (फेसबुक) पर जो चेहरे नैपथ्य में रहकर अक्सर संवाद किया करते हैं, वो चेहरे वास्तविक जीवन में एक दूसरे के सम्मुख आने पर अक्सर एक दूसरे से अनजान बनते देखे जाते हैं । हमारे साथ ऐसा अनेक बार हुआ है, किन्तु कभी कभी कुछ अविस्मरणीय अपवाद भी हुआ करते हैं ।
आज अकस्मात् ही श्री बदरीनाथ धाम में एक बालक “मयंक सिंह” जिसे हम केवल फेसबुक पर ही जानते थे, उसके साथ अकस्मात् ही हमारा सामना होने पर उसके मुखमण्डल की प्रसन्नता ओर उत्साह अकल्पनीय ओर अद्वितीय थे । श्रद्धापूर्वक प्रणाम करने के उपरान्त अकस्मात् भेंट होने से वह अवाक् जैसा प्रतीत हो रहा था, किन्तु उसकी प्रसन्नता हमें अपने प्रभाव में ले चुकी थी ।
आधुनिक परिवेश के विपरीत कुछ अन्तरानुभूतियां ऐसी रहीं जो कि व्यक्त किये जाने की सीमा से ही परे हैं । तदुपरान्त औपचारिक संवाद के उपरान्त हम दोनों ने अपने अपने गन्तव्य की ओर प्रस्थान किया ।
किन्तु उसके मुखमण्डल की प्रसन्नता ओर उत्साह हमारे मस्तिष्क पटल पर मानो अंकित हो चुका था ।
दर्शनोपरान्त हम बदरीनाथ से कर्णप्रयाग तक पहुंचे ओर अपने इस अनुभव को लिखने के लिए प्रथम पंक्ति ही लिख रहे थे कि सहज ही सामने देखा तो पुनः वही बालक कर्णप्रयाग में दिखा, हमने उसको देखते ही वाहन रूकवाया, किन्तु इस समय वो कुछ विचलित व संकोच की मुद्रा में था, सम्भवतः उसको अपने गन्तव्य गमन के लिए वाहन की प्रतीक्षा विचलित किए हुए थी, ओर उसने हमसे हमारे वाहन में स्थान देने का संकोचपूर्वक आग्रह किया, क्योंकि वह इस विषय से अनभिज्ञ था कि उसने प्रातः से तो हमारे मस्तिष्क में डेरा डाल रखा है तो वाहन में स्थान क्यों नहीं मिलेगा !
सम्भवतः श्री बदरीनाथ धाम में हुई भेंट अधूरी रह गई थी इसलिए प्रकृति ने पुनः कर्णप्रयाग में मिलाया तो कर्णप्रयाग से रूद्रप्रयाग तक वह बालक ओर हम साथ ही आए ।
पूर्व वर्ष भी हमारे साथ कुछ ऐसा ही घटित हुआ था, जब 20 नवम्बर की प्रातः दर्शन हेतु श्री बदरीनाथ मन्दिर के सभामण्डप में जैसे ही हमने प्रवेश किया वैसे ही श्री बदरीनाथ मन्दिर का सभामण्डप एक प्रसन्न व उत्साहित कण्ठ से निर्गत ध्वनी से गूंज उठा था “जय नीलकण्ठ महादेव, आईये नीलकण्ठ गिरी महाराज” इस ध्वनी ने हमको चोंका दिया था ।
ऐसा बोलने वाले सज्जन ने पहले हमें बड़े ही सम्मान व प्रेमपूर्वक श्री बदरीनाथ जी के श्री विग्रहमण्डल का परिचय व दर्शन कराने के उपरान्त अपना परिचय दिया तो हम आश्चर्यचकित रह गए थे, क्योंकि वह सज्जन श्री बदरीनाथ जी के वेदपाठी “आचार्य श्री रविन्द्र भट्ट जी” थे जिनको हम जानते तो थे किन्तु पहचानते नहीं थे, जबकि वो हमें फेसबुक के माध्यम से पहचानते थे । इसके बाद हम एक दूसरे के साथ फेसबुक पर जुड़े थे ।
बहुत कम सज्जन ही ऐसे होते हैं जो किसी जान या पहचान को इतना महत्व देकर उसका सम्मान कर सकते हैं, ऐसे सज्जन स्वयं भी उसी सम्मान व प्रतिष्ठा के नैसर्गिक पात्र होते हैं, व सदैव ही मान प्रतिष्ठा व सौहार्द से सम्पन्न होते हैं ।
ये दोनों भेंट मेरे जीवन की अविस्मरणीय घटनाओं का भाग हैं । एक के द्वारा “प्रेम से पुकारा जाना” ओर दूसरे की “वो प्रसन्नता” कभी विस्मृत नहीं होने वाली स्मृति रहेंगी ।
यह भी एक अनोखा संयोग ही है कि हमारी ये दोनों ही भेंट श्री बदरीनाथ धाम में श्री बदरीनाथ मन्दिर के कपाट बन्द होने के समय पर लगातार दो वर्ष हुई हैं ।
जय श्री बदरी विशाल ।