आप कितने आध्यात्मिक या अच्छे है, इसका इस बात से कोई संबंध नहीं हैं की आपको कितना कष्ट सहना होगा । किसी के आध्यात्मिक विकास का मतलब यह नहीं है कि वह प्रकृति के नियमों के दायरे से बाहर है । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई लड़का है, मगरमच्छ हैं, गधा हैं या खरगोश, जीवन में कोई गारंटी नहीं है । और शायद, यह अनिश्चितता ही हमारे जीवन को साहसिक बनाती है ।
अच्छा या महान होना आपको शारीरिक या मानसिक रोगों से बचा नहीं सकता है।
अच्छा होने का मतलब यह नहीं है कि आप सड़क दुर्घटना का शिकार नहीं हो सकते।
अच्छा होने से आपके शेयर की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ता है ।
अच्छा होने मात्र से आप किसी प्रतियोगी परीक्षा में सफल नहीं हो सकते ।
यदि आप किसी से बहुत प्यार करते हैं और वफादार हैं तो भी इसकी कोई गारंटी नहीं की आपका साथी आपको धोखा नहीं दे सकता ।
फिर सवाल तो यही उठता हैं कि क्या हमें बुरा होना चाहिए ? जी बिलकुल नहीं । अच्छाई हमें चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करने की ताकत देती है । हमारी चुनौतियां हमें परखती हैं और उससे हमारा एक दृष्टिकोण निर्धारित होता हैं। बेशक हमारी अच्छाई हमें जीवन के कष्टों से नहीं बचा सकती परन्तु हमारा दृषिकोण हमे उस कष्ट की अवस्था में भी सम्बल प्रदान कर सकता हैं । एक उचित दृष्टिकोण के होने से आप कष्ट की अवस्था में भी दुःख का अनुभव नहीं करेंगे, आपको परेशान करने की कोशिश अवश्य की जा सकती हैं परन्तु कोई आपको कुचल नहीं पायेगा ।
अच्छाई प्रार्थना हैं, ध्यान हैं, एक तप हैं । अच्छाई ही साक्षात् ईश्वर हैं, अतः हर परिस्थिति में अच्छा बने रहना ही उचित हैं ।