योग के नाम पर असंयमित नौटंकी !

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन को अनन्त खुशियों से परिपूर्ण करें ।

आधुनिक पीढ़ी के व्यवसायिक योगियों द्वारा जिस प्राचीन “योग विद्या” के मूल स्वरूप को नष्ट करते हुए इस प्राचीन विद्या को इतिहास की गर्त में धकेलते हुए जिस आधुनिक “योगा” को आत्मसात व प्रचारित किया जा रहा है ना !!!

वह वास्तव में शारिरिक व्यायाम, नट ओर नाट्य विद्याओं का समावेश मात्र है । जिसको योग के नाम से प्रचारित करने से वास्तविक “योग विद्या” की मूल पहचान धूमिल व दुष्प्रभावित हो रही है ।

अर्थात् ! स्पष्ट कहूं तो आजकल “नट विद्या” को सीखने वाले अपने नाम के “आगे या पीछे” बड़ी ही निर्लज्जतापूर्वक “योगी” लिख रहे हैं । जबकि इनको प्राचीन “योग विद्या” की बारहखड़ी का भी अनुभूत ज्ञान नहीं होता है ।

जबकि “योग विद्या” तो शील, एकाग्रता, ध्यान, धारणा ओर देह व आत्म मंथन से युक्त होकर आध्यात्म तथा आत्मदर्शन से आकण्ठ परिपूर्ण विद्या है ।

फिर तुम्हारी आने वाली पीढ़ियां कहा करेंगी कि – “प्राचीन काल में एक “योग विद्या” हुआ करती थी । ओर हमारे पूर्वज आदिकाल से विश्व का मार्गदर्शन करने वाले “भारत देश” का वासी होने के घमण्ड में चूर होकर इतने “मूर्ख – धूर्त ओर निकृष्ट” बन गए थे, कि उन्होने निजहित, धन के लालच व पाश्चात्य संप्रभुता के प्रभाव में आकर उस “योग विद्या” को हमेशा के लिए खो दिया । ओर शारिरिक व्यायाम, नट ओर नाट्य विद्याओं के समावेश से सृजित “योगा” नाम का नया तमाशा सीख बैठे ।”

हमारे इस लेख से यदि किसी सज्जन को आघात पहुंचा हो तो इस लेख का पुनः अवलोकन करें ओर पुनः – पुनः अवलोकन करते हुए अपने ही गिरहबान में झांकते रहें ।