जब आस्था या भक्ति “ओवर फ्लो” हो जाती है तो जो पूर्णतः “असंवैधानिक व अमान्य” है, वह सब कुछ इसी प्रकार “संवैधानिक व सर्वमान्य” लगने लगता है, जैसे कि “ॐ” कार प्रणव, राम, कृष्ण आदि लिखा हुआ वस्त्र इनके कंधों से लेकर इनके नाभि क्षेत्र से नीचे पैरों तक की शोभा बढ़ाने लगता है !
इसी प्रकार जहां तहां बहुत सारे ब्राहमण, पुजारी, भक्त लोग उनकी आस्था या भक्ति “ओवर फ्लो” होने या उनकी औकात से अधिक धार्मिक हो जाने पर अपनी धार्मिकता का दिखावा करने के लिए विभिन्न देवों, मन्त्रों, देव चिन्हों के छपे हुए वस्त्रों को कोई धोती के रूप में, तो कोई अंगोछे के रूप में, कोई कुर्ता पजामा, कमीज ओर बनियान के रूप में उपयोग करते हुए देखे जा सकते हैं ! तथा उन वस्त्रों से नाक, मुंह, हाथ पोंछते हुए देखे जा सकते हैं !
सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि हमारे देश में हमारे देश व संस्कृति के सहारे ही पल रही अनेक तथाकथित रूप से सनातन धर्म की स्वनाम धन्य धार्मिक संस्था रूपी बड़ी बड़ी “हस्तियां, ऊंटनियां, घोड़ियां, अजगर” आदि स्वयं अपने अनुयायियों, अतिथियों, विदेशी अतिथियों, सरकारी अधिकारियों, छुटभय्ये नेताओं से लेकर संवैधानिक पदों पर बैठे हुए राजनेताओं आदि तक को उनका सम्मान करने के बहाने अपने प्रतिष्ठानों से हमारी संस्कृति के ईश, देवों, मन्त्रों, देव चिन्ह छपे हुए वस्त्र, अंगवस्त्र अंगोछे के रूप में नाक, मुंह, हाथ पोंछने के लिए देते हैं !
इनसे भी चार कदम ओर आगे बढ़कर हमारे धार्मिक स्थलों पर उन मन्दिरों व देवताओं के चित्र छपे हुए वस्त्र, खिलौनों, सजावटी प्रतीकों को बेचने का प्रचलन और बन गया है, ओर इसमें भी इस प्रचलन का प्रारम्भ, प्रोत्साहन, विस्तार व “उपयोग” करने वाले भी कोई ओर नहीं बल्कि हमारी सनातन संस्कृति के ही मनुष्य रूपी व्यापारी- सांस्कृतिक बलात्कारी- कीड़े- मकोडे- जीव- जन्तु- पशु- पक्षी ही हैं, जो अपनी संस्कृति को ही दीमक की भांति ग्रस रहे हैं !
क्योंकि हमारी संस्कृति में ईश, देवों, मन्त्रों, देव चिन्हों की अवमानना, अपमान, निन्दा, मर्यादा हनन के लिए किसी भी प्रकार के अनुशासनिक व दण्डात्मक प्रावधान नहीं हैं !
ईश, देवों, मन्त्रों, देव चिन्हों की अवमानना, अपमान, निन्दा, मर्यादा हनन के लिए किसी भी प्रकार के अनुशासनिक व दण्डात्मक प्रावधान बनें भी तो क्यों बनें ?
क्योंकि जिनके पास ईश, मन्त्रों, देव चिन्हों की मर्यादा के पालन, संरक्षण, संवर्धन का दायित्व है, वह स्वयं ही अपनी संस्कृति की सांस्कृतिक व शाश्वत मर्यादा का बलात्कार कर रहे हों तो ईश, देव, मन्त्रों, देव चिन्हों आदि की अवमानना, अपमान, निन्दा, मर्यादा हनन के लिए किसी भी प्रकार के अनुशासनिक व दण्डात्मक प्रावधान बनाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता है !
क्योंकि यदि कोई अन्य व्यक्ति, संस्था या संस्थान इन विषयों पर अनुशासनिक व दण्डात्मक प्रावधान बनाए तो निश्चित ही उसके विरूद्ध ही ब्राह्मण, सनातन या हिन्दू विरोधी होने के फतवे जारी होने लग जाएंगे !
“अरे धूर्तों ! व्यापार, दिखावे, ढोंग, पाखण्ड से बेचने व अपमानित करने के लिए यहां ओर भी बहुत कुछ है, लेकिन व्यापार, दिखावे, ढोंग, पाखण्ड से बेचने व अपमानित करने के लिए तुमको हमारी सनातन संस्कृति में ही सभी सम्भावनाएं क्यों दिख रही हैं ?”
अब आप चाहे सनातनी हो, हिन्दू हो, ब्राह्मण हो, बणिया हो, क्षत्रिय हो, शूद्र हो, व्यापारी हो, उपभोक्ता हो अथवा किसी अन्य जाति-प्रजाति के हो या इन सब में से किसी के अनुयायी हो, इस विषय में हमारा जो अभिप्राय है हमने उसमें से थोड़ा सा यहां पर स्पष्ट लिख दिया है ! जिस किसी को हमारे इस लेख के सापेक्ष कोई फतवा निकालना हो तो वो निश्चिन्त होकर फतवा निकाले !
लेकिन बड़ी ही बेशर्मी के साथ हमारी संस्कृति के ईश, देवों, मन्त्रों व देव चिन्ह छपे हुए वस्त्रों, खिलौनों, सजावटी प्रतीकों का व्यापार व इस प्रकार उपयोग करके हमारी संस्कृति के ईश, देव, मन्त्रों व देव चिन्हों का अपमान करना ठीक नहीं है !
बड़ी निर्लज्जता के साथ हमारी सनातन संस्कृति की ही उपज खाकर उससे पल-बढ़कर उसी संस्कृति का व्यापार ओर उसी संस्कृति का अपमान करना ठीक नहीं है !
हमारे इस लेख से यदि किसी को किसी भी प्रकार की ठेस पहुंची हो तो हम क्या करें !!!
(इस लेख में हमने अपने संस्कृति व धर्म के जीवों को सम्बोधन करने में “हमारी संस्कृति” शब्द का ही उपयोग इसलिए किया है, क्योंकि यदि सभी सनातन संस्कृति के अनुयायी अपनी संस्कृति का केवल दोहन-ह्रासन ही न करते तो यह अनादि संस्कृति आज किसी के द्वारा संरक्षित किए जाने की मोहताज ना होती !)