हे आदिशक्ति स्वरूपिणी ! हे नारी शक्ति परमेश्वरी ! जब तू अपने स्वाभिमान का पूर्णतः ह्रास कर चुकी होगी, तब तू वापस अपने उसी पुराने मर्यादित, समृद्ध अस्तित्व को केवल खोजती ही रह जाएगी !
एक समय ऐसा भी था जब सुन्दर आंचलमय मर्यादित वस्त्रों, नूपुर, कंकणादि अलंकारों, संस्कारों से सुशोभित नारी ही समृद्ध व सम्मानित होती थी ।
ओर अब ऐसा समय है कि जब सुन्दर आंचलमय मर्यादित वस्त्रों, नूपुर, कंकणादि अलंकारों, संस्कारों से सुशोभित नारी गंवार, अनपढ़ व तुच्छ मानी जाती है, ओर मर्यादित वस्त्रों, नूपुर, कंकणादि अलंकारों, संस्कारों से कंगाल नारी ही संस्कारवान, समृद्ध व सम्मानित मानी जा रही है ।।
किन्तु कब तक मानी जाएगी ?
जब इसका अहंकार इसके स्वाभिमान का पूर्णतः ह्रास कर चुका होगा तब यह वापस अपने उसी पुराने मर्यादित, नूपुर, कंकणादि अलंकारों, संस्कारों से समृद्ध अस्तित्व को खोजती फिरेगे ।
परन्तु दुर्भाग्यवश तब इसको इसका वह पुराना समृद्ध अस्तित्व दशकों में प्राप्त नहीं हो सकेगा, तब इसको जन्म पर जन्म लेने होंगे तब कहीं जाकर इसको इसका वह पुराना समृद्ध अस्तित्व प्राप्त होने की कोई सम्भावना हो सकेगी ।
इसलिए हे नारी ! हे नारायणी ! अभी भी समय है ! तू अपने उसी पुराने मर्यादित, नूपुर, कंकणादि अलंकारों, संस्कारों से सुशोभित अस्तित्व, अपने चीर, शील, सम्मान, लज्जा को धारण करके नारायणी बनकर अपनी मर्यादा में ही रह कर इस श्रृष्टि, संस्कृति ओर भावी वंशावलियों का संरक्षण कर ले !!!
(द्वारा :- श्री नीलकण्ठ गिरी)
(प्रकृति व देह तन्त्र रहस्य, 125/2 संस्कृति व उन्माद रहस्य, दिनांक :- 07/02/2010)