भक्ति भाव के नाम पर मानव की विचित्र प्रवृत्ति !

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन को अनन्त खुशियों से परिपूर्ण करें ।

आज मध्य प्रदेश से देवभूमि में दर्शन करने आए हुए कुछ पर्यटकों के साथ में हमारी थोड़ी सी बहस हो गई ।

बहस का कारण केवल इतना सा था कि वह लोग चलती हुई बस से लंगूर, बन्दरों को खाने के लिए चना व इलायची दाना आदि खाद्य पदार्थ मार्ग पर फेंकते जा रहे थे ।

मार्ग पर खाद्य पदार्थ को देखकर लंगूर, बन्दर मार्ग पर वाहनों के मध्य में आ जा रहे थे जिस कारण से वाहन की चपेट में आने पर किसी जीव को क्षति पहुंच सकती थी ।

हमने किसी प्रकार उस बस को रूकवाकर उसमें बैठे यात्रियों को ऐसा करने से मना किया तो वह लोग एक बहुप्रचलित बेतुकी सी भाषा में व्हाट – व्हाई आदि चटर पटर करने लगे ओर अन्त में हमारा मन्तव्य समझकर “साॅरी – साॅरी वी डॅन्ट डू अगेन” आदि बोलकर वापस अपनी बस में सवार होकर चल दिए ।

इसी मध्य ये लंगूरों के चौधरी साहब भी अकस्मात् ही उनमें से एक पर्यटक की कनपटी पर मधुर सी “चटाक” की ध्वनि तरंग को उत्पन्न करते हुए एक स्वादिष्ट सा चपत विधिवत् प्रदान करने के उपरान्त यहां स्तम्भ पर बैठकर शायद यही सोचने बैठ गए थे कि पुण्य कमाने के नाम पर मनुष्य प्रजाति के ये पशु कैसे उनके जीवन ओर स्वतन्त्र अस्तित्व के साथ खेल रहे हैं ।

तब हमारी समझ में आया कि ” अच्छा ये तो सभी अंग्रेजी पढ़े लिखे ओर शहरों में रहने वाले तथाकथित सभ्य सम्भ्रान्त लोग हैं, तो इन बेचारों को इतनी अकल ही कहां से होनी थी कि सार्वजनिक स्थानों या मार्गों पर बन्दर, लंगूर आदि वन्य जीवों को खाद्य पदार्थ नहीं देना चाहिए ।”

उनसे तो ये लंगूरों के चौधरी साहब ही समझदार निकले जिन्होने यह समझकर उनमें से एक व्यक्ति को खुलेआम चपत ही जड़ दी कि ये विवेकहीन लोग अपने पुण्य कमाने के फेर में उनके जीवन ओर स्वतन्त्र अस्तित्व के साथ ही खेल रहे हैं ।

निश्चित रूप से सार्वजनिक स्थानों या मार्गों पर वन्य जीवों को खाद्य पदार्थ देना कोई “पुण्य कर्म” नहीं बल्कि “हिंसात्मक कर्म” है” ।

अतः कृपया सार्वजनिक स्थानों या मार्गों पर बन्दर, लंगूर आदि वन्य जीवों को खाद्य पदार्थ न देकर उनके जीवन ओर स्वतन्त्र अस्तित्व का संरक्षण करें ।