हे हिरण्यसुन्दरी परमेश्वरी ! तेरा प्रकृति रूपी जो स्त्री स्वरूप है, वह देव संस्कृति के अनुसार अनेक परिधानों, अलंकार व श्रंगार से सुशोभित होने के कारण तेरे पुरूष रूपी पति के लिए भी दुर्लभ व अत्यन्त गोपनीय है !
किन्तु हे सुरसुन्दरी परमेश्वरी ! इस काल में तेरा वह अत्यन्त गोपनीय स्वरूप अर्ध वा न्यून परिधानों से युक्त होने के कारण पिता, भ्राता, ज्येष्ठ, अनुज, स्वसुर व पुत्रादि के सम्मुख मर्यादा व लज्जा से विमुख होकर अनावृत क्यों है ?
हे कुलसुन्दरी परमेश्वरी ! मैं जानता हूं कि जिस कुल में भी तू कन्या रूप में जन्म लेकर मर्यादा व लज्जा से विमुख होकर आचरण करती है, यह उस कुल के अभिभावकों का अतिदुर्भाग्य है, उस कुल के अभिभावकों को अपनी सन्तान को श्रेष्ठ शिक्षा व संस्कार देने के प्रति संवेदनशील न होने के दण्ड स्वरूप ही उनको ऐसे दुर्भाग्य से आवृत्त करती है ।
हे श्यामसुन्दरी परमेश्वरी ! अपनी सन्तान को श्रेष्ठ शिक्षा व संस्कार देने के प्रति संवेदनशील न होने, अमर्यादा व निर्लज्जा का अनुसरण करने व स्वतन्त्रता प्रदान करने वाले ऐसे निकृष्ट कुल में जन्म लेने वाले मनुष्यों से मेरा कदापि सम्पर्क व सम्बन्ध न बन सके व ऐसे निकृष्ट कुल में जन्म लेने वाले मनुष्यों का मुझे दर्शन मात्र भी न हो सके, ऐसा मेरा सौभाग्य हो !!
जय विकराल रूप धारिणी ।
द्वारा :- श्री नीलकण्ठ गिरी महाराज
(प्रकृति व देह तन्त्र रहस्य, 106/6 श्यामा रहस्य, 04/09/2008)