चित्र, चलचित्र द्वारा व ऑनलाईन दीक्षा का व्यवसाय !

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन को अनन्त खुशियों से परिपूर्ण करें ।

सभी धर्म व सम्प्रदायों में गुरु का स्थान सर्वोच्च है ! लेकिन हमारे सनातन धर्म के धर्मगुरुओं, महागुरुओं और सिद्धगुरुओं का स्थान नीति, धर्म, शास्त्र, श्रृष्टि के नियम और ईश्वर से भी सर्वोच्च है, क्योंकि ये वो सब करने में सक्षम हैं जो कि नीति, धर्म, शास्त्र, श्रृष्टि के नियम और ईश्वर भी नहीं कर सकता है !

पिछले कुछ वर्षों से हमारे सनातन धर्म के धर्मगुरुओं, महागुरुओं और सिद्धगुरुओं की असीम कृपा व उनके द्वारा आधुनिक तकनीकियों के प्रयोग से हमारे सनातन धर्म की ख्याति और उसकी शिक्षा – दीक्षाएं दिन दस गुणा और रात सौ गुणा विस्तार कर रहे हैं ! हमारे सनातन धर्म के धर्मगुरु, महागुरु और सिद्धगुरु जन अपने धर्म व संस्कृति के संवर्धन के लिए दिन रात एक किये हुए हैं, इसके लिए ये हमारे परमपूजनीय महापुरुष गण दूरभाष/चित्र, चलचित्र व इन्टरनेट, ऑनलाईन व ऑफलाईन माध्यमों को भी नहीं छोड़ रहे हैं !

ये बेचारे अपने धर्म व संस्कृति के संवर्धन व संरक्षण के लिए देश, काल, समय, शास्त्र और सिद्धान्त का विचार किये बिना कोई तो दूरभाष के माध्यम से, कोई ऑनलाईन लाईव टीवी के माध्यम से, कोई ऑनलाईन इन्टरनेट के माध्यम से, तो कोई चित्र, चलचित्र (वीडियो सीडी) के माध्यम से साधनाएं व मन्त्र दीक्षाएं बांटने में व्यस्त हैं ! इसमें भी सबसे विशेष बात यह है कि इस धर्म, आध्यात्म की शिक्षा – दीक्षा के बाजार में धर्म, आध्यात्म की शिक्षा – दीक्षा खरीदने के लिए केवल शास्त्र, सिद्धान्त से अनभिज्ञ या शास्त्र, सिद्धान्त के विपरीत आचरण करने वाले आधुनिक शिक्षा प्राप्त पढ़े लिखे मूर्ख व धनपति लोग ही योग्य होते हैं, शास्त्र, सिद्धान्त के अनुसार आचरण करने वाले और गरीब व मध्यम वर्ग के लोग इस बाजार में योग्य शिष्य भी नहीं बन पाते हैं !

और ये बेचारे अपने धर्म व संस्कृति के संवर्धन व संरक्षण के लिए इतना आत्मसमर्पित हो चुके हैं कि अब इन बेचारों को इतनी भी होश नहीं बची है कि शिक्षा – दीक्षा देने के लिए सिद्धान्त व शास्त्रज्ञा क्या है ? और “दूरभाष/चित्र, चलचित्र व इन्टरनेट, ऑनलाईन व ऑफलाईन आदि माध्यम” केवल सूचनाओं के आदान- प्रदान व संवाद करने के माध्यम मात्र होते हैं, यह सब शिक्षा – दीक्षा की शक्ति व ऊर्जा संचारित या ग्रहण करने के साधन नहीं होते हैं !

सिद्धान्त के अनुसार इन माध्यमों से केवल ज्ञान व उपदेश तो दिया जा सकता है किन्तु न तो इस प्रकार से दीक्षा दी जा सकती है और न ही बीजमन्त्रों का उच्चारण किया या कराया जा सकता है ! शास्त्राज्ञा व सिद्धान्त के अनुसार दीक्षा केवल गुरु सानिध्य में ही प्राप्त हो सकती है, अथवा केवल अतिविषम परिस्थितियों में अत्यन्त संवेदनशील व घातक “प्राणप्रतिष्ठा” के सिद्धान्त के अनुसार ही दी जा सकती है ! इस प्रकार से दीक्षा देने के नाम पर शास्त्र व दीक्षा/साधना के नियम से अनभिज्ञ समाज को मूर्ख बनाकर भोगा अवश्य जा सकता है, जो कि वर्तमान में जहां तहां हो ही रहा है ! क्योंकि भजन, भोजन, गर्भाधान व दीक्षा सदैव व्यक्तिगत ही होते हैं, ये कभी भी सार्वजनिक नहीं हो सकते हैं !

स्वयं तो अगम व निगम शास्त्रों को जो भलीभांति समझ न पा रहे हों वो दूरभाष/चित्र, चलचित्र व ऑनलाईन माध्यमों से दीक्षा देने के नाम पर शास्त्र व दीक्षा/साधना के नियम से अनभिज्ञ भोले भाले सम्पन्न समाज को भोग रहे हैं ! दूरभाष/चित्र, चलचित्र व इन्टरनेट के माध्यम से दूरभाष की ध्वनि/चित्र, चलचित्र के चित्रों या इन्टरनेट में सवार होकर कौन तथाकथित आधुनिक महापुरुष दीक्षा की दिव्य तरंगे दूरभाष की ध्वनि/चित्र, चलचित्र के चित्रों या ऑनलाईन दीक्षा लेने वाले शास्त्र व दीक्षा/साधना के नियम से अनभिज्ञ शिष्य के अवचेतन में किस प्रकार प्रवेश करा सकता है ???

भोजन व जल आदि ग्रहण कर भूख प्यास मिटाना व गर्भाधान करना भौतिक शरीर की सामान्य प्रक्रिया है, जो कि स्वयं भोजन, जल व देह से दूर रहकर पूर्ण नहीं हो सकती हैं, फिर दीक्षा तो इन सबसे शुक्ष्म व जटिल प्रक्रिया है जिसमें गुरु को अपने शिष्य के अवचेतन में स्थित उसकी अभीष्ट साधना से सम्बन्धित शक्ति के अणु रूपी बीज को खोजकर उस बीज को अंकुरित करके अपनी प्राण ऊर्जा के एक अंश को उस बीज की प्राणशक्ति के रूप में स्थापित करना होता है, तो फिर गुरु के सानिध्य के बिना दीक्षा कैसे सम्भव हो सकती है ??? निश्चित ही यह अवैद्य माध्यमों से दीक्षा देने के नाम पर शास्त्र व दीक्षा/साधना के नियम से अनभिज्ञ भोले भाले सम्पन्न समाज की सम्पन्नता को भोगने का एक सरल मार्ग बना लिया गया है !

पुर्णतः विशुद्ध व परम श्रेष्ठ धर्म, आध्यात्म, दीक्षा व साधना विधान व विज्ञान के मध्य दूरभाष/चित्र, चलचित्र व इन्टरनेट के माध्यम से दीक्षा प्रदान करने जैसी आधारहीन, नियम व सिद्धान्तहीन घटिया प्रक्रियाएं सम्मिलित कर देने वाले उच्च श्रेणी के “धर्म व्यवसायी” तथाकथित निगुरे “स्वयंभू: गुरुओं” के साथ – साथ आमजनमानस भी विवेक से अंधा हो चुका है, जिसको यह भी नहीं दिख रहा है कि दूरभाष/चित्र, चलचित्र व इन्टरनेट आदि केवल सूचनाओं के आदान- प्रदान व संवाद करने के माध्यम मात्र हैं, यह सब आहार, जल, शक्ति व ऊर्जा ग्रहण करने के साधन नहीं हैं ! यदि इनके द्वारा आपकी आहार व जल ग्रहण कर सकने की क्षमता हो तो ही ऐसे माध्यमों का अनुसरण करना चाहिए, अन्यथा क्यों स्वयं से स्वयं को ही छल रहे हो ???

दूरभाष/चित्र, चलचित्र व ऑनलाईन माध्यमों के द्वारा समाज को शिक्षा – दीक्षा देकर कृतार्थ करने वाले “तथाकथित सिद्धगुरु और महागुरु” और ऐसे ही अवैद्य व सिद्धान्तहीन माध्यमों से शिक्षा – दीक्षा लेने के लिए प्रयास व आग्रह करने वाले “पढ़े- लिखे मूर्ख लोग” पहले दूरभाष/चित्र, चलचित्र व ऑनलाईन माध्यमों के द्वारा अपनी भूख, प्यास बुझाना सीखो, ओर ओरों की भी भूख, प्यास बुझाकर दिखाओ तब तो लगेगा कि हां इन नौटंकियों के पास इनके गुरु का दिया हुआ कुछ ज्ञान व शक्ति है ! क्योंकि सर्वसम्पन्न ऑनलाईन कारोबार से बाहर के अकालग्रस्त क्षेत्रों व भुखमरी से पीड़ित लोगों के मध्य आप जैसी “ऑनलाईन आपूर्ति” करने वाली नौटंकियाँ उनकी भूख – प्यास मिटाकर “भगवान” की भांति पूजित हो सकती हैं !

“स्वयंभूः दिव्य महागुरुओं, सिद्धगुरुओं” द्वारा नवसृजित इस “असैद्धान्तिक दिव्य विधि” से दीक्षा लेने वाले सज्जनों की वह दीक्षा पूर्ण नहीं होती है और ना ही उस साधना का कोई प्रतिफल ही साधक को प्राप्त होता है, इस विधि से दीक्षा लेने वाले सज्जनों द्वारा साधना किये जाने पर साधनाकाल अथवा साधना के उपरान्त यदि कुछ भी सकारात्मक घटना या किसी अभीष्ट समस्या का समाधान हो जाता है तो यह मात्र साधक की आस्था, श्रद्धा व सकारात्मकता के परिणाम स्वरूप अथवा मात्र एक संयोग अथवा उस समस्या का स्वतः ही निवृत्त होने का समय होने से होता है ! व इसके साथ ही वह साधक दोबारा भी वह दीक्षा लेने से सदैव के लिए प्रतिबन्धित हो जाते हैं, क्योंकि किसी भी मन्त्र की दीक्षा केवल एक बार ही हो सकती है, चाहे वह दीक्षा सैद्धान्तिक विधि से हो अथवा असैद्धान्तिक विधि से हो !

जब दूरभाष यंत्रों/चित्र, चलचित्र (वीडियो सीडी) या ऑनलाईन इन्टरनेट द्वारा इस सृष्टि का कोई भी देव, दैत्य, नर आदि जीव भोजन, जल आदि कुछ भी आहार नहीं ग्रहण कर सकता है और ना ही गर्भाधान कर सकता है, तो पिछले कुछ वर्षों से केवल हमारे देश व केवल हमारे सनातन धर्म में ही दूरभाष/चित्र, चलचित्र (वीडियो सीडी) व ऑनलाईन माध्यमों से दीक्षाएं देने का कारोबार किस आधार पर फल फूल रहा है ???

दूरभाष यंत्रों/चित्र, चलचित्र (वीडियो सीडी) या ऑनलाईन इन्टरनेट के माध्यम से दीक्षा प्रदान करना (जो कि शास्त्र सम्मत ही नहीं है, यह शास्त्रों में पुर्णतः निषेध है, ऐसा कराने वाला गुरु व ऐसा करने वाला शिष्य सर्वथा त्याज्य है)

इनको कहते हैं शास्त्राज्ञा का उल्लंघन करके शास्त्रों का ज्ञान देने वाले शास्त्रों के “पंजिकृत” ठेकेदार !!!

(किसी को इस लेख से आघात पहुंचा हो तो कृपया हमें क्षमा मत करना, बस आत्ममंथन करना कि आप भी ऐसा ही कोई सिद्धगुरु, महागुरु हैं या ऐसे ही किसी सिद्धगुरु, महागुरु के श्रीचरण सेवक हैं ???)