स्वयं को ज्ञानी, विज्ञानी, मानवता ओर सृष्टि का पक्षधर मानने वालों को अभी तक यह भी पता नहीं है कि नियन्त्रित काम, क्रोध, लोभ, मोह ओर अहंकार का नाम ही उस जगत् सृष्टा की “शाश्वत सृष्टि” है ।
ओर बात करते हैं वेद, वेदांत विज्ञान की !
क्योंकि यदि ये पांच ही न रहे होते तो “तुम्हें यह शिक्षा देने वाले” ओर “तुम्हारी औकात” ही क्या होती ?
नियन्त्रित काम आन्तरिक शक्ति संचय, बहुप्रतिभावान बनने, वंशवृद्धि व आत्मोत्थान करने का एकमात्र मूल स्रोत है ।
नियन्त्रित क्रोध “विपरीत परिस्थियों” के विपरीत “नवीन व अनुकूल परिस्थिति” अविष्कृत करने का एकमात्र मूल स्रोत है ।
नियन्त्रित लोभ विषम परिस्थितियों, भविष्य की संभावनाओं व आवश्यकताओं के निमित्त अनिवार्य संचय हेतु आवश्यक एकमात्र साधन है ।
नियन्त्रित मोह अपने वंश, संतति व प्रणाली के पास अपनी संस्कृति, संस्कारों, विद्याओं व परम्पराओं को सुरक्षित व अग्रसारित करने का एकमात्र साधन है ।
ओर नियन्त्रित अहंकार ज्ञान, विज्ञान, विद्या में अन्य को उन्नति हेतु प्रेरित करने का एकमात्र साधन है ।