विश्वगुरुओं के दिमाग का अपंग कीड़ा !

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः । माँ भगवती आप सब के जीवन को अनन्त खुशियों से परिपूर्ण करें ।

हमारा देश भारत सदैव से विश्वगुरू था, विश्वगुरू है ओर सदैव विश्वगुरू ही रहेगा ।

क्योंकि यहां हर किसी की खोपड़ी में एक अपंग कीड़ा घुसा हुआ है जिसके कारण यहां हर किसी को ऐसा लगता है कि उसके जैसा श्रेष्ठ ना कोई था, ना कोई है और ना ही कोई ओर होगा ।

यहां हर किसी को अपने से आगे वाले को धक्के से गिराकर स्वयं आगे आने का मानसिक रोग है, जबकि ये अत्यन्त महत्वाकांक्षी श्रेष्ठ मूर्ख इतना भी नहीं जानते हैं कि हर कोई आगे आने की प्रतिस्पर्धा में ही लड़े जाएगा तो फिर उनके पीछे कौन रहेगा ? फिर कौन किसका नेतृत्व कर पाएगा ?

वैसे तो सब श्रेष्ठ समझदार हैं पर इतना विवेक किसी में भी नहीं कि “जयचन्द बनकर पृथ्वीराज को तो मरवा दोगे किन्तु मिलेगा तुमको भी ठेंगा ही । ” इतिहास से भी नहीं सीख सकते ओर करना चाहते हैं “नेतृत्व” ।

ऐसी उच्च श्रेणी के घटिया मानसिक चरित्र के कारण ही विश्वगुरू का अब नाम ओर घर ही शेष बचा है गुण, प्रभाव व श्रेष्ठता तो तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं ओर घमण्ड की भेंट चढ़ चुकी है, ओर भारत की समृद्धि का मूल स्रोत हमारी सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी (सनातन संस्कृति) को बेचकर पाश्चात्यता, नग्नता, संस्कृतिदोष, आड़म्बर ओर वर्ण व्यवस्था को बन्धक बनाकर जातिवाद का दुःसाध्य रोग ले आए, हमारी “सोने की चिड़िया” भी कब की उड़ गई, यदि ऐसे ही चलता रहा तो अब जो “कौवे” बचे हुए हैं ना वो भी उड़ेंगे तुम देखते रहियो ।

फिर काहे का विश्वगुरू रह जाएगा भारत देश ?

कड़वी है पर सभी जाति, वर्ण, धर्म व सम्प्रदायों के लिए यह एक ही खुराक पर्याप्त है ।

क्योंकि यहां हर किसी की खोपड़ी में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझने का अपंग कीड़ा घुसा हुआ है ।