!! श्री गुरु कपिलो विजयेतेतराम !!
!! श्री श्रीचक्रराज सम्राज्ञी श्री ललिता महात्रिपुरसुन्दरी योगमाया सर्वत्र विजयेते !!
।। मैं तो उस अक्षय व दिव्य ऊर्जा पुंज की प्रतीक्षा में ठहरा हुआ हुं, जो घनघोर नादयुक्त प्रकाशित होकर मेरे इस नश्वर पिण्ड से मेरे नैसर्गिक अस्तित्व को अपने आंचल में भरकर के मुझे मेरे मूल अक्षय, अनन्त, नित्य व दिव्य अस्तित्व में ले जाकर विलय करेगा ।।
(चेतावनी :- यहां लिखा गया विवरण श्री नीलकण्ठ गिरी जी महाराज द्वारा लिखित पुस्तक ( प्रकृति व देह तन्त्र रहस्य) के अनेक भागों में से संकलित किया हुआ एक संक्षिप्त अंश मात्र है, जिसका बौद्धिक सम्पदा अधिकार के अन्तर्गत सर्वाधिकार व मूल प्रति हमारे पास सुरक्षित है !)
इस सदी में इस श्रृष्टि की “प्राकृतिक व अप्राकृतिक त्रासदीमय” परिस्थितियां सन 2011 ई. से प्रारम्भ होकर सन 2030 ई. (विक्रमी सम्वत् 2087) के बाद ही सामान्य व पुनर्स्थापित होनी प्रारम्भ होंगी, तथा यह अवस्था “सन 2011 ई. से 2016 ई. तक गौण” तथा “सन 2017 ई. से 2022 ई. तक मध्यम” एवं “सन 2023 ई. से 2030 ई. के पूर्वार्ध तक अपने पूर्ण चर्म पर होगी, यदि समय रहते समस्याओं का स्थाई निदान नहीं किया जाता है तो किन्हीं अज्ञात कारणों से यह “प्राकृतिक व अप्राकृतिक त्रासदी” की कार्यवाही 2034 तक भी निरन्तर रह सकती है । जिसमें मानव द्वारा जनित विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक एवं कृत्रिम उपद्रव, तथा प्रकृति द्वारा विभिन्न सामान्य एवं रहस्यमय उपद्रव सम्मिलित रहेंगे ।
इस त्रासदीमय काल में विभिन्न देशों में मानव द्वारा जनित विभिन्न प्रकार के कृत्रिम जैविक/रासायनिक विषाणु, रोगाणु, रोग, युद्ध, गृहयुद्ध, आकस्मिक सत्ता परिवर्तन, कृत्रिम भूगर्भीय दुर्घटनाएं, कृत्रिम भौगोलिक दुर्घटनाएं एवं भौगोलिक परिवर्तन, कृत्रिम भूकम्प, कृत्रिम बाढ़, साम्प्रदायिक युद्ध, अन्तर्जातीय युद्ध, प्रजा में असन्तोष, विद्रोह, सत्ता-हरण तथा आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिक, वैचारिक पतन, धूर्तता व भ्रष्टता के साथ-साथ प्रकृति, दैवीय सत्ताओं, तपश्चारियों के नीति, निर्देश, मर्यादाओं के उल्लंघन व अतिक्रमण के परिणाम स्वरूप जनित असंख्य रहस्यमय, विस्मयकारी एवं विध्वंसकारी उपद्रवों आदि घटनाक्रम व घटक “सन 2023 ई. से 2030 ई. के पूर्वार्ध तक अपने पूर्ण चर्म पर रहेंगे ।
इसके साथ साथ प्रकृति द्वारा जनित सूखा, बाढ़, अतिवृष्टि, भूस्खलन, भूकम्प, किसी भू-भाग का विलय तो किसी नए भू-भाग का उत्थापन, कहीं कहीं पर भीषण एवं वृहद् अग्निकाण्ड, अनेक महामारियां, तापमान का अत्यन्त उच्चतम स्तर, विभिन्न प्रकार के सौरमण्डलीय उपद्रव, तथाकथित पर्यावरण परिवर्तन, भू-गर्भीय, प्राकृतिक पारिस्थितिकीय तन्त्र की मर्यादाओं के उल्लंघन, अतिक्रमण व असंतुलन के परिणाम स्वरूप जनित असंख्य रहस्यमय, विस्मयकारी एवं विध्वंसकारी उपद्रवों आदि विभिन्न रहस्यमय घटनाक्रम व घटक “सन 2023 ई. से 2030 ई. के पूर्वार्ध तक अपने पूर्ण चर्म पर रहेंगे ।
इसी कालखण्ड में किसी या किन्हीं राष्ट्रों के विखण्डन, निर्माण अथवा विलयन की भी प्रबल सम्भावनाएं हैं ।
इस कालखण्ड में भारत, इजरायल, रूस, इंग्लैण्ड आदि देश अप्रत्याशित रूप से अत्यन्त सक्षम हाथों में रहेंगे, किन्तु इस कालखण्ड में इन देशों सहित अन्य अनेक देशों की प्रजा “सत्ताच्युत धूर्त” राजनेताओं तथा “महत्वाकांक्षी धूर्त व्यक्तियों” के द्वारा व्यक्तिगत स्वार्थों की पूर्ति हेतु रचित “गुप्त षडयन्त्रों” से ग्रस्त होकर अपने देश व अपने देश की सत्ता-संप्रभुता, संविधान, संपत्तियों, आर्थिकी, संस्कृति, नीति-नियमों व समाज के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार करेगी । अनेक देशों में “अज्ञात गुप्त षडयन्त्रों” के अधीन “केवल किसी देश की सत्ता के सक्षम हाथों में होने कारण ही” उन देशों के “विपक्ष के निहित स्वार्थों का दम घुटने के कारण” वहां के विपक्ष अपने ही देशों को अस्थिर करने में अपनी समस्त “शक्तियों, षड़यन्त्रों, हथकण्डों” का उपयोग करके विभिन्न प्रकार से आमजनमानस के मध्य तत्कालीन सरकारों के प्रति असंतोष, विद्रोह तथा विभिन्न उपद्रवों का योजनाबद्ध “उत्पादन” करके उन सरकारों के साथ साथ उन देशों की सत्ता-संप्रभुता, आर्थिक, व्यवसायिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक व नैतिक समृद्धियों का व्यापक स्तर पर नैतिक हरण-क्षरण करेंगे ।
इस त्रासदीमय काल में ऐन्द्रजालिक, तन्त्र, छल, कपट, पाखण्ड, भय व जादुई विद्याओं के शक्ति प्रदर्शन द्वारा समाज को अपने प्रति आकर्षित एवं प्रभावित करके स्वयं को समाज के मध्य में आध्यात्मिक या धार्मिक गुरू अथवा देवताओं के अवतार के स्वरूप में स्थापित कर लेने वाले प्राणी वास्तव में “आध्यात्मिक या धार्मिक” व्यक्ति नहीं होने के कारण निजस्वार्थों की पूर्ति के निमित्त “धर्म का चोला पहने हुए राजनेता” के रूप में धार्मिक युद्ध, साम्प्रदायिक युद्ध, अन्तर्जातीय युद्ध के कारणों का सृजन करके भीषण मानवीय, सामाजिक एवं आर्थिक अहित का कारण बनेंगें ।
इस त्रासदीमय काल में ऐन्द्रजालिक, तन्त्र, छल, कपट, पाखण्ड, भय व जादुई विद्याओं के शक्ति प्रदर्शन द्वारा समाज को अपने प्रति आकर्षित एवं प्रभावित करके स्वयं को समाज के मध्य में आध्यात्मिक या धार्मिक गुरू अथवा देवताओं के अवतार के स्वरूप में स्थापित कर लेने वाले प्राणी वास्तव में “आध्यात्मिक ज्ञान व आध्यात्मिक शक्तियों” से युक्त नहीं होने कारण “समाज में पूजित होने और अपनी चढ़ावे की दुकान” चलाने के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, साधनाओं, कर्मकाण्डों की पद्धतियों, नियमों, क्रियाओं, गोपनीयताओं व मर्यादाओं को भ्रष्ट, अशुद्ध, विकृत तथा मनमाने स्वरूप में प्रस्तुत करके वह उन प्राचीन समृद्ध परम्परागत पद्धतियों का ह्रास करके “वास्तविक एवं छद्म” पद्धतियों के मध्य दुविधापूर्ण परिस्थिति का निर्माण कर देंगे”, जिस कारण वह अपने साथ साथ अपनी भावी पीढ़ियों तथा अपने अनुयायियों/शिष्यों के भी भीषण अहित का कारण बनेंगें ।
इस त्रासदीमय काल खण्ड में पाखण्डी अपने पाखण्ड द्वारा समाज के मध्य में आध्यात्मिक या धार्मिक गुरू अथवा देवताओं के अवतार के रूप में स्थापित होकर पूजित होंगे, तथा इनकी शरणागत होने वाले प्राणी उन पाखण्डियों के भ्रमजाल में फंसकर केवल उन पाखण्डियों के पौषक मात्र बनकर व्यतीत हुआ अतीत मात्र बनकर रह जाएंगे !
इस त्रासदीमय काल में केवल आध्यात्म से प्रेरित पांच राष्ट्र एवं कुछ जनहितैषी राजनैतिक शक्तियां, भू-गर्भ, प्राकृतिक पारिस्थितिकीय तन्त्र के विशिष्ट वैज्ञानिक विशेषज्ञ, तथा विशेषकर आध्यात्मिक व धार्मिक स्तर पर प्रजा, नीति नियन्ताओं व राष्ट्रों का सटीक मार्गदर्शन कर सकने में सक्षम कुछ “दिव्य हिमालयी क्षेत्र के तपस्वी सन्यासी महापुरुष जन” एकजुट होकर प्रयत्न करें तो वह इस त्रासदी में अपने ज्ञान, विज्ञान, अनुभवों, दूरदर्शिता, शक्ति व प्रभाव का प्रयोग करके प्रकृति एवं जन-धन का संरक्षण करने में कुछ सीमा तक सफल रह सकते हैं । किन्तु आध्यात्मिक व धार्मिक स्तर पर प्रजा, नीति नियन्ताओं व राष्ट्रों का सटीक मार्गदर्शन कर सकने वाले सक्षम तपस्वी “सन्यासी महापुरुषों” को सामाजिक, आधुनिक विज्ञान की विचारधाराओं व मान्यताओं के अनुरूप ना होने के कारण उनको अनपढ़, अज्ञानी, महत्वहीन समझकर “आधुनिक प्रजा, नौकरशाहों, शासन व सत्ताओं” द्वारा पुर्णतः “तटस्थ रखने अथवा उनको नियंत्रित करने” का भी हर सम्भव प्रयत्न किया जायेगा, जिसके परिणाम स्वरूप सत्ताएं क्षति को रोकने में असफल रह सकती हैं ! जबकि “दिव्य हिमालयी क्षेत्र के तपस्वी सन्यासी महापुरुषों” के पास आधुनिक लोकप्रचलित पारम्परिक समाधान ना होकर इनके अपने आध्यात्मिक ज्ञान, विज्ञान के विश्लेषण द्वारा सृजित किए हुए वह अभेद्य व अचूक समाधान हो सकते हैं जिनका प्रभाव “चिरस्थाई” होता है ।
जबकि राष्ट्रों एवं जनहितैषी राजनैतिक शक्तियों तथा आमजनमानस द्वारा आध्यात्मिक व धार्मिक स्तर पर मार्गदर्शन हेतु “भव्य मठों” में से आवाहन किए जाने वाले सज्जन केवल “जानकारियों एवं तर्क-कुतर्कों का अनुभवहीन अक्षय भण्डार” होने के कारण इस विडम्बना को समझने में भी सक्षम नहीं होने के कारण किंकर्तव्यविमूढ़, स्वार्थमय, भ्रामक एवं अहं से ग्रस्त, सामर्थ्यहीन की अवस्था में रहेंगे ।
अतः “सन 2011 ई. से सन 2030 ई. के पूर्वार्ध तक” विशेषकर “सन 2023 ई. से 2030 ई. के पूर्वार्ध तक” अथवा यदि समय रहते समस्याओं का स्थाई निदान नहीं किया जाता है तो “सन 2034” तक इस श्रृष्टि के समस्त प्राणी “मानव” तथा “प्रकृति व मानव” द्वारा जनित अनेक रहस्यमय विध्वंसक, महाविनाशक षड़यन्त्रों एवं त्रासदियों से ग्रस्त, त्रस्त रहते हुए इन षड़यन्त्रों का साक्षात्कार करते हुए पीड़ित व कालकवलित होते ही रहेंगे । जिनके परिणाम स्वरूप कुछ देशों, राज्यों या क्षेत्र विशेषों की जनसंख्या 10% से 30% तक ही शेष जीवित बचे रहने की सम्भावना है ।
“सन 2026 ई. से 2032 ई. के मध्य, एवं सन 2037 ई. से 2042 ई. के मध्य” तथाकथित पर्यावरण परिवर्तन, भू-गर्भीय, प्राकृतिक, पारिस्थितिकीय तन्त्र की मर्यादाओं के उल्लंघन, अतिक्रमण व असंतुलन के परिणाम स्वरूप हिमालयी क्षेत्र में त्वरित एवं चक्रीय भू-आकृतिक परिवर्तन: एक नवीन ‘विवर्तनिक-उत्क्रमण’ या “हिमालय का महा-रेचक” तीव्रतापूर्वक गतिशील हो जाएगा जिसके परिणाम स्वरूप हिमालय में वृहत भू-स्खलनों, धँसाव और असंख्य भ्रंशों के सक्रिय होने से भारतीय पट्टिका एशिया महाद्वीप से पुनः पृथक होना प्रारम्भ कर देंगी, तथा “सन 2053 ई. से 2054 ई. के मध्य एवं सन 2067 ई. से 2070 ई. के मध्य” तक का कालखण्ड भी इसी प्रकार हिमालयी क्षेत्र में व्यापक भौगोलिक परिवर्तनों के कारण संवेदनशील रहेगा ।
“मानव” तथा “प्रकृति” द्वारा जनित इन विध्वंसक एवं विनाशकारी षड़यन्त्रों से जिस किसी प्राणी को भी सुरक्षित रहना हो वह अपने उत्कर्ष व संरक्षण हेतु “उत्कृष्ट मार्ग” अथवा उत्कृष्ट “आध्यात्मिक मार्गदर्शक” को समय रहते आत्मसात करके उसके संरक्षण व दिशानिर्देशों के अनुसार सुरक्षित व संरक्षित हो जाना सुनिश्चित कर ले, अन्यथा बाद में सब कुछ ध्वस्त हुआ ही शेष बचेगा !
(द्वारा :- श्री नीलकण्ठ गिरी महाराज :- प्रकृति व देह तन्त्र रहस्य, भाग :- प्राकृतिक व अप्राकृतिक विध्वंस रहस्य, सर्ग :- “विध्वंसों का मेला” का 16/24, दिनांक :- 14/01/2006)
(चेतावनी :- इस पृष्ठ पर लिखा गया उपरोक्त विवरण श्री नीलकण्ठ गिरी जी महाराज द्वारा अपने साधनात्मक स्तर पर शोधों द्वारा लिखित ( प्रकृति व देह तन्त्र रहस्य) के अनेक भागों में से संकलित किया हुआ एक संक्षिप्त अंश मात्र है, जिसका बौद्धिक सम्पदा अधिकार के अन्तर्गत सर्वाधिकार व मूल प्रति हमारे पास सुरक्षित है, अतः कोई भी संस्था, संस्थान, प्रकाशक, लेखक या व्यक्ति इस लेख का कोई भी अंश अपने नाम से छापने या प्रचारित करने से पूर्व इस लेख में छुपा लिए गए अनेक तथ्यों के लिए शास्त्रार्थ व संवैधानिक कार्यवाही के लिए तैयार रहना सुनिश्चित करें !)
(मानव द्वारा जनित कोरोना विषाणु, युद्ध तथा प्रकति द्वारा जनित सूखा, बाढ़, भूस्खलन व भूकम्प आदि इस त्रासदी के ही मध्यम व छोटे – छोटे अंग मात्र हैं ।)
ऐसा क्या है यहां जिसको साथ लेकर आये थे और साथ में लेकर ही जाना है ?
ऐसा क्या है यहां जिसको प्राप्त करने के लिए भी और प्राप्त करने के बाद भी व्याकुल ही हो रहे हो ?
ऐसा क्या है यहां जो प्राप्त हो जाने के बाद सदैव के लिए केवल तुम्हारा ही रह सकता है ?